इन आंखो कि मस्ती के मस्ताने हजारो हें
इन आँखों के बाबस्ता अफसाने हेंक तुम ही नही तनहा , उल् फत मे मेर रुसवा
इस सहर मे तुम जैसे ,दिवाने हजारो हें
एक सिर्फ हामी मई को आंखो से पिलाते हें
केहेने को दुनिया मे मयखाने जारो हे
इस सम- ए -फरो झा को आधी से डराते हो
इस सम- ए -फरो झा का परवाने हजारो हें
Tuesday, 31 July 2007
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